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अनेक बार हम मरीजों सहित उनके परिजनों को कहते सुनते हैं कि फलां
डॉक्टर तो भगवान का रूप है। हमें तो नई जान दे दी। लाखों दुआएँ दी
जाती है। जब वही 'भगवान' शैतान का रूप धर ले तब क्या किया जाएगा।
चंद पैसों के लालच में पड़कर जान बचाने वाला, जान लेने वाला बन जाता
है। रक्षक, भक्षक बन जाता है। कसाई तो एक झटके से बकरे/ मुर्गे जैसे
जानवरों की जान ले लेता है, लेकिन डॉक्टर तो कसाई से भी बदतर
तरीके से एक इंसान की जान लेता है, उस इंसान की जो पूरी तरह से
लाचार है, बेबस है, एक अजन्मी बच्ची है।
यह जुर्म करने के लिए डॉक्टर को उसी बेबस, लाचार, बच्ची के मां-बाप
उकसाते हैं, उसे यह कुकृत्य करने के लिए सुपारी (पैसे) देते
हैं। आखिरकार पैसों पर लार टपकाता हुआ वो भ्रूण हत्या जैसा जघन्य
अपराध करने के लिए खुशी-खुशी राजी हो जाता
है। डॉक्टर उस अजन्मी
बच्ची की गर्भ में ही हत्या
कैसे करता है, उस बच्ची को
कैसी-कैसी यातनाएं सहनी पड़ती है, उसकी असहाय वेदना का आभास भले
ही लोभी डॉक्टर को न हो, पुत्रेच्छा में
फंसी माँ को भले ही अपनी
लाडली की हृदय विदारणी चीख न सुनाई पड़े, लेकिन उनकी आत्मा पर इस
जघन्य अपराध की छाप सदैव के लिए पड़ जाती है। मासूम अजन्मी बच्ची
के हत्यारे के पाप तो स्वयं गंगा मैया भी नहीं धो सकती।
भ्रूण हत्या यानि गर्भपात की अनेक पद्धतियां है, लेकिन
मुख्यतयाः इन
पांच पद्धतियां का प्रचलन हैः-
1. चूसन पद्धति
2. फैलाव व निष्कासन पद्धति
3. जहरीली क्षार वाली पद्धति
4. चीरफाड़ विधि
5. दवा पद्धति
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1. चूसन पद्धति :- इस पद्धति
में पम्पिंग मशीन का नलीनूमा भाग
गर्भवती स्त्री के गर्भाशय में डालकर
पम्पिंग शुरू की जाती है।
जिससे गर्भस्थ शिशु गर्भाशय की दिवारों से टकरा-टकरा कर मूर्च्छित
हो जाता है, इस दौरान पिशाचिनी की भांति मशीन उसका
रक्त चूस लेती
है। जब गर्भस्थ शिशु मांस का लौथड़ा मात्र रह जाता है तब उसे नुकीले
औजारों से काटकर गर्भाशय से बाहर निकाला जाता है। यदि मरने के बजाय गर्भस्थ शिशु मूर्च्छित अवस्था में बाहर निकल आए तब उसे डॉक्टर
के कसाई साथी(कम्पाऊन्डर) मार डालते हैं।
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2. फैलाव व निष्कासन पद्धति :- इस पद्धति में चिकित्सक द्वारा
गर्भवती महिला के गर्भाशय का मुख चौड़ा किया जाता है। फिर नुकीले
औजारों को गर्भाशय में डाल कर गर्भस्थ शिशु को बींध लिया जाता है।
फिर उस शिशु के छोटे-छोटे टुकड़े किए जाते हैं। तत्पश्चात उन
चीथड़ों को चम्मच नुमा औजार से बाहर निकाला जाता है। इस दौरान
गर्भाशय में से
रक्त रिसता रहता है।
गर्भस्थ शिशु की इतनी दर्दनांक मौत का दृश्यांत लिखने-पढ़ने मात्र
से एक इंसान की
रूह कांप उठती है, लेकिन पुत्र मोह में
फंसी
मां और लोभी डॉक्टर की आत्मा न जाने
क्यों नहीं जागती। ऑप्रेशन सफल
होने पर भ्रूण से छुटकारा पाने वाली मां और कुकृत्य करने वाले डॉक्टर को बधाई अवश्य दी जाती है। वाह री मां, वाह
रे डॉक्टर!
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3. जहरीली क्षार वाली पद्धति :- जिस प्रकार एक विशाल जहरीला नाग
की जहरीली फुंकार से इन्सान तड़प-तड़प कर मर जाता है तथा जैसे
अजगर अपने शिकार को निगल जाता है। उसी प्रकार इस पद्धति से शिशु को
मौत का ग्रास बनाया जाता है। इस पद्धति में एक लंबी व मोटी सुई
गर्भस्थ में डाल दी जाती है, फिर उसमें पिचकारी (सिरींज) की सहायता
से क्षारीय जहरीला पानी गर्भाशय में छोड़ा जाता है। चारों ओर से
घिरा बालक जहरीला पानी निगल जाता है। गर्भस्थ शिशु उस जहर से इस
प्रकार तपड़ उठता है, जैसे जल बिन मछली, और उसकी सांसें रुकने लगती
हैं। आखिर में वो परमात्मा द्वारा प्रदान संसार की सबसे सुरक्षित
जगह मां की कोख में तड़फ-तड़फ कर दम तोड़ देता है। फिर डॉक्टर उस
मृत शरीर को गर्भाशय से बाहर निकाल अपने सफल चिकित्सक होने का भ्रम
पाल लेता है।
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4. चीरफाड़ (सिजेरियन) पद्धति :- इस पद्धति में चिकित्सक गर्भवती
महिला का पेटकाट कर गर्भाशय में से बच्चे को जीवित ही निकाल लेते
हैं। उसके पश्चात् तथाकथित 'सマय' माँ-बाप या 'योग्य'
चिकित्सक या फिर उनके 'हमदर्द' सहयोगियों द्वारा उस अबोध अविकसित
शिशु का वध कर कचरे के
डिब्बे या गट्टर में डाल दिया जाता है।
5. दवा पद्धतिः- प्रोस्टाग्लाइनडीन पद्धति में गर्भवती महिला को
ऐसी दवा दी जाती है, जिसके खाने से गर्भस्थ शिशु का दम घुटने लगता
है, और वो तड़प-तड़प कर मर जाता है।
इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र व गरीब बस्तियों में अनचाहे गर्भ से
छुटकारा दिलवाने के लिए गर्भ निरोधक दवाओं का सेवन, गर्भाशय को
जहरीली जड़ी बुटियों की धूनी देना, दाइयों द्वारा गर्भस्थ को इस
ढंग से दबाना की गर्भ गर्भाशय से बाहर आ जाए, इत्यादि अनेक
यातनापूर्ण विधियां अपनाई जाती हैं।
कुछ झोला छाप डॉक्टर तो
अमानवयता की हदें पार कर देते हैं। वे गर्भवती महिला
को ओक्सिटोसिन
का इंजेक्शन तक लगा देते हैं। यह
इंजेक्शन गाय-भैंस का दूध उतारने
के काम आता है। इस
इंजेक्शन के लगने से विशालकाय गाय-भैंस तड़प
उठती है और अपने शरीर में जमा दूध का त्याग कर देती है। सरकार ने
उनकी इस तड़फ को ध्यान में रखते हुए इन
इंजेक्शन को पशुओं को
लगाने पर सख्त पाबंदी लगाई हुई है, लेकिन पुत्रेच्छा कहें या फिर
अनचाहे गर्भ से छुटकारे की लालसा को गर्भवती महिला जाने-अनजाने में
उस इंजेक्शन को लगवाती है जिससे उस महिला की मौत भी हो सकती है।
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